भारत मंदिरों का देश कहा जाता है। यहां आप हर दो कदम में मंदिर देख पाएंगे। हर मंदिर की अपनी कहानी, इतिहास तथा प्राथमिकता है, जो कि श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करती है। राजा हो या रंक हर कोई भगवान के सामने अपना शीश जरूर झुकाता है और आशीर्वाद प्राप्त करता है।
आज हम आपको Most Popular Temple of Jharkhand के बारे में बताने जा रहे हैं जो झारखंड में ही नहीं बल्कि पूरे देश - विदेशों में अपनी प्रसिद्धि बनाए हुए हैं । जिसका नाम है दिवड़ी मंदिर (Diwdi Mandir) । दिवड़ी मंदिर कहाँ स्थित है?, दिवडी मंदिर कैसे पहुँचे ?,दिवड़ी मां की प्रतिमा कैसी है ? दिवड़ी मंदिर का निर्माण कैसे हुआ है? दिवड़ी मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथाएं ?
दिवड़ी मंदिर कहाँ पर स्थित है?
धोनी जब भी अपने शहर रांची आते हैं तब अपना थोड़ा सा समय निकाल कर मां दिवड़ी की दर्शन करना नहीं भूलते हैं। महेंद्र सिंह धोनी जब भी किसी मैच खेलने के लिए बाहर जाते हैं तो उससे पहले माता रानी के पास माथा टेकने जरूर आते हैं।
आदिवासी और हिंदू संस्कृति का संगम है दिवड़ी मंदिर-
दिवड़ी मंदिर की खास विशेषता यह है कि इस मंदिर को आदिवासी और हिंदू संस्कृति का संगम कहा जाता है क्योंकि इस मंदिर के मुख्य पुजारी पाहन होते हैं और उसके साथ साथ ब्राह्मण भी पुजारी होते हैं।
दिवड़ी मंदिर की बेहद ही अद्भुत बात-
इस मंदिर की अद्भुत बात यह है कि दिवड़ी गांव के आस - पास में बहुत सालों तक कोई भी पक्का मकान नहीं था ।कहा जाता है कि अगर इस गांव में कोई भी व्यक्ति अपना पक्का मकान या बिल्डिंग बनाता था या बनाने की कोशिश करता था तो उसके घर में कोई न कोई अनहोनी जरूर होता था ।
जैसे कि उसका घर में धन - धान्य की कमी होना, घर में आग लगना , कोई जीव - जन्तु का आकस्मिक मृत्यु हो जाना वगैरा-वगैरा । लेकिन अभी की आधुनिकता युग में लगभग सभी लोगों को प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत एक पक्का मकान मिला हुआ है। इस घर को बनाने में कोई भी जलाया हुआ वस्तु का उपयोग नहीं करते हैं ।
दिवड़ी मां की प्रतिमा कैसी है ?
दिवड़ी गांव में वर्तमान नवनिर्मित विशाल दिवड़ी मां की मंदिर के अंदर मध्य भाग स्थित में गर्भ ग्रह जैसा पत्थर के टुकड़े को जोड़कर एक ढांचा खड़ा है । ठीक उसी के अंदर सोलहभुजी देवी दुर्गा का प्राचीन मूल मंदिर है।
इसी में उसकी प्रतिमा प्रतिष्ठित हुई है। पत्थर के टुकड़ों को सजा कर उन्हें बिना किसी सीमेंट अथवा अन्य किसी प्रकार के चिपकाने वाला पदार्थ का उपयोग किए बिना इस प्रकार जोड़ दिए गए हैं कि मंदिर का आकार बन गया है।
इस मंदिर में विराजमान मां दिवड़ी की सोलहभुजी मां दुर्गा की मूर्ति है। इस मंदिर में स्थापित मां देवी की प्रतिमा उड़ीसा के मूर्ति शैली जैसी ही है। इसके प्रवेश द्वार में पहले पत्थर की ही चौखट दरवाजा लगा हुआ था लेकिन अब इसे खोल दिया गया है। माता की प्रतिमा काले रंग के पत्थर प्रस्तर खंड पर उत्कीर्ण है।
मां दुर्गा के बाएं 4 हाथों में धनुष, ढाल, पदमफूल है लेकिन सिर्फ चार हाथों में थोड़ा क्षतिग्रस्त रहने के कारण स्पष्ट नहीं है। देवी मां के दाहिने हाथों में तलवार, तीर, डमरु, गद्दा, शंख, त्रिशूल आदि हैं। माता के बाएं पैर मुड़ा हुआ है तथा दाहिना पैर कमल के फूल के ऊपर है। माता बाजूबंद , कमरधनी आदि आभूषण से सुसज्जित हैं।
दिवड़ी मां की विचित्र महिमा-
गांव के लोगों का कहना है कि मां दुर्गा देवी की प्रांगण आसपास इलाकों में मां का वाहन मध्यरात्रि में भ्रमण करता है। जिस समय मां का वाहन यहां से गुजरता है उस समय सन - सन की आवाज आती है।
उस समय मंदिर का मुख्य दरवाजा अपने आप खुल जाता है। माता का वाहन आने का परंपरा प्राचीन काल से ही चली आ रही है इसे कोई भाग्यशाली व्यक्ति देख पाता है। इस मंदिर में मंगलवार को खास पूजा होती है।
ऐसे तो महाआरती हर रोज सुबह 6:00 बजे तथा शाम 6:00 बजे होती है। उसके बाद मंदिर में आप पूजा कर सकते हैं और संध्या आरती करके मंदिर का मुख्य द्वार बंद कर दिया जाता है ।
दिवड़ी मंदिर का निर्माण कैसे हुआ है तथा दिवड़ी मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथाएं ?
मंदिर का निर्माण किसने कराया किसी की एक राय नहीं है बस कहा जा सकता है।
एक कथा-
एक कथा के अनुसार असुर यहां का प्राचीन जाती है जो कि तकनीकी दक्षता में बहुत आगे थी। लोहा गलाने की एक पद्धति भी उनलोगों के पास थी। इस इलाके में बहुत साल पहले असुर लोग ही रहते थे उनका संबंध द्रविड़ कूल से है। दिवड़ी मां का निर्माण इन्हीं लोगों द्वारा किया गया था।
दूसरी कथा-
दूसरी कथा के अनुसार सिंहभूम के राजा केरा अपने दुश्मनों से पराजित होकर दिवड़ी गांव पहुंचे और वह अपने साथ देवी की प्रतिमा भी लाए थे। वही प्रतिमा को इस जगह पर स्थापित करके मंदिर का निर्माण कार्य को पूरा किया।
तीसरी कथा-
तीसरी कथा के अनुसार एक दिन की बात है तमाड़ के राजा कहीं शिकार खेलने गए हुए थे उसके लौटने तक बहुत ही शाम हो गई थी और बहुत तेज बारिश होने लगी जिसके कारण राजा को दिवड़ी गांव में ही रुकना पड़ा।
दिवड़ी गांव से कुछ ही दूर पार करके एक नदी भी है , तेज बारिश के चलते नदी में बाढ़ की तरह पानी भर गया। जिसके कारण राजा तथा उसके सेना नदी को पार नहीं कर पाए इसलिए उनको दिवड़ी गांव में ही शरण लेना पड़ा।
उस रात में राजा को एक सपना आया एक देवी की और वह बोली बेटा मैं तुम्हारे पास एक झाड़ी में विराजमान हूं, तुम मेरी पूजा करो, तुम्हारी सारी इच्छाएं पूर्ण हो जाएंगी। इतना ही कह कर वह अंतरध्यान हो गई।
जब राजा की आंखें खुली तो वहां उसके आस-पास कोई दिखाई नहीं दिया अचानक बिजली चमकी तो पास में एक झाड़ी दिखाई दिया।
सुबह में जब उस गाड़ी को साफ किया गया तो वास्तव में उस झाड़ी के अंदर एक विशाल सिलावट में देवी मां का प्रतिमा मूर्ति दिखाई पड़ा। उसी समय से उस जगह पर पूरे विधि विधान से पूजा पाठ शुरू हो गया तथा मंदिर का भी निर्माण किया गया।
तमाड़ के राजा ने ही मंदिर में पूजा पाठ हेतु उड़ीसा के पंडित स्वर्गीय चमरू पंडित को नियुक्त किया तथा उन्हीं के वंशज आज तक मंदिर में पूजा करते आ रहे हैं।
निष्कर्ष :-
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Nice
ReplyDeleteजय माँ देवड़ी जी
ReplyDeleteJai Mata Di
ReplyDelete@Rajkumar vlog