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Perwa Ghagh Fall-The House Of Pigeons- Khunti Ki Shaan |
झारखंड में जल - जंगल तथा पहाड़ - पर्वत देखने से ही बनती है। यहां बहुत ऊंचे-ऊंचे जलप्रपात मौजूद हैं जिसके लिए पूरे भारतवर्ष में मशहूर हैं। वैसे तो हमारे झारखंड में बहुत सारे नदियां, झरने तथा डैम आदि मौजूद हैं।
तो चलिए आज हम आप को बताने जा रहे हैं एक बेहद खूबसूरत और बहुत ही खास तथा विख्यात जलप्रपात के बारे में जिसका नाम भी एक पक्षी से है। जी हां हम बात कर रहे हैं पेरवा घाघ जलप्रपात की जो झारखंड के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में से एक है।
पेरवा घाघ जलप्रपात कहां पर अवस्थित है ?
पेरवा घाघ जलप्रपात खूंटी जिले के तोरपा प्रखंड में स्थित है। यह रांची से 75 किलोमीटर की दूरी पर है। खूंटी से कर्रा जाने वाले रास्ते में बायां ओर से जाती है, तोरपा चौक से बाएं ओर एक रास्ता जसपुर की ओर निकलता है, करीब 16 किलोमीटर आगे जाने पर जंगल के बीच पर है पेरवा घाघ। यहां आप बाइक, कार तथा बस से आसानी से पहुंच सकते हैं।
कैसे पहुंचें पेरवा घाघ जलप्रपात ?
- Nearest Airport - Ranchi Airport
पेरवा घाघ जलप्रपात से निकटतम हवाई अड्डा बिरसा मुंडा हवाई अड्डा है दूरी लगभग 73.2 Km है।
- Nearest Railway Station - Ranchi & Hatia Railway Station
रांची रेलवे स्टेशन से 75.5 Km है तथा हटिया से 70.1 Km है।
- Nearest Bus Stand - Ranchi, Khunti & Simdega Bus Stand
रांची बस स्टैंड से 35 KM, खूंटी बस स्टैंड से 30 KM, तथा सिमडेगा बस स्टैंड से है।
पेरवाघाघ किस नदी पर अवस्थित है ?
पेरवाघाघ झरने का निर्माण चतरा नदी से हुआ है, जो झारखंड के खूंटी जिले में बहने वाली प्रमुख नदियों में से एक है।![]() |
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पेरवाघाघ जलप्रपात की यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय कौन-सा है ?
अगर आप झरने का गिरावट को अच्छा से देखना चाहते हैं तो सबसे अच्छा समय वर्षा के मौसम के दौरान है, खासकर अगस्त के महीने में, इस जगह का जल स्तर अधिक रहता है और ऊपर से पानी का गिरना अधिक सुंदर और सराहनीय लगता है। हालांकि, पिकनिक के लिए यात्रा करने का सबसे अच्छा समय दिसंबर से सर्दियों के महीनों के दौरान है।
क्या है पेरवा घाघ जलप्रपात की विशेषता ?
पेरवा यानी कबूतर और घाघ का अर्थ है गिरता हुआ जल।
झारखंड में कई घाघ हैं मगर पेरवा घाघ के हरे जल को देखकर आप मोहित हुए बिना नहीं रह सकते हैं। पेरवा घाघ की खासियत यह है कि यहां पर सालों भर पानी नहीं सूखता है। सालों भर पानी लबालब भरा रहता है।
पेरवा घाघ के बारे बहुत सारे किवदंति भी प्रचलित हैं -
Story 1 :- पेरवा घाघ जलप्रपात के बारे में लोगों का कहना है कि सात खटिया की रस्सी डालने पर भी जिसकी गहराई की कोई ताह नहीं ली जा सकी वह जगह है "पेरवा घाघ"।
Story 2 :- प्राकृतिक सौंदर्य के गुणगान से पहले जो एक अनोखी कहानी पता चली उसे बता दें । जहां से कारो नदी का पानी गिरता है उसके आस-पास चट्टानों से बनी गुफाएं हैं। किवदंति है कि पहले उस जगह असंख्य कबूतर रहते थे। इसलिए लिए लोग इसे पेरवा घाघ जलप्रपात कहने लगे।
Story 3 :- पेरवा घाघ जलप्रपात में जिस पत्थर से पानी गिरता है, उसे स्थानीय लोग "सुग्गाकटा" कहते हैं। इसे आप सुग्गा कटा जलप्रपात भी कह सकते हैं। उस पत्थर को एक सुग्गे अर्थात तोते ने काटकर ऐसा स्थान बनाया कि पानी वहां से गिरने लगा और तोते ने जिस चट्टान को काटकर अलग किया वह वहां से बहते हुए कुछ दूर जाकर ठहर गया है जिस पर सैलानी पिकनिक मानते हैं।
पेरवा घाघ जलप्रपात से उत्पन्न ध्वनि मन को रोमांचित कर देती है-
यहां पर इतने चट्टान है कि इस चट्टान से पानी जब गुजरती है तो एक अलग तरह से ध्वनि (Sound) निकलती है जो मन को रोमांचित कर देती है, जिसके कारण यह पर्यटन स्थल पर्यटकों का बहुत ही प्रिय स्थल है। यहां की वातावरण लोगों को बहुत ही आनंद तथा मन को शांत कर देने वाली है। प्रकृति की गोद में बसी हुई है पेरवा घाघ। इसकी सुंदरता देख कर मन प्रफुल्लित होती है।![]() |
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आप जब भी यहां पर आते हैं तो नहाने नहीं भूलिएगा क्योंकि इतना सुंदर पानी और ना ज्यादा ठंडा ना ज्यादा गर्म होता है । बस आपसे एक आग्रह है कि ज्यादा गहराई में न जाएं क्योंकि यह बहुत ही जानलेवा तथा खतरनाक है। इसमें अक्सर लोग कुछ लापरवाही के चलते अपनी जान गवां बैठते हैं।
इसी झरने के बगल में एक गुफा है जहां शिवलिंग स्थित है। कोई पीढ़ी पहले यहां के ग्रामीण इस शिवलिंग के दर्शन के लिए जाते थे। थोमन सिंह नाम का एक ग्रामीण 7 दिनों तक इसी खोह ( यानी एक प्रकार का गुफा ) में रहा था ऐसा ग्रामीणों का कहना है। इतनी सी कहानी तो लगभग सारे पर्यटक जानते ही होंगे लेकिन मैं वह बता रहा हूं जो शायद बहुत कम लोगों को पता होगा।
पेरवा का देव कर्ज के रूप में धान और मछली दिया करता था-
पेरवा घाघ की गुफाओं में पेरवा का देवता रहता था। वह जरूरत के समय में ग्रामीणों को जीविका चलाने के लिए धान और मछली कर्ज के रूप में दिया करता था। उसी धान की खेती कर और मछली पालन करके स्थानीय निवासी अपना जीवन यापन (जीविकोपार्जन) करते थे। जब उनकी फसल पकती तो कर चुका देते थे।
मगर एक बार की बात है किसी ग्रामीण ने करहैनी (काले रंग धान) पेरवा देव को लौटा दिया, इससे उस देवता को लगा कि यह ग्रामीण मुझसे छल कर रहे हैं और बदले में मुझे जला हुआ धान दे रहे हैं। जिसके कारण देवता रुष्ट हो गया और उस दिन से किसी को भी कर्ज नहीं देने लगा।
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कहानी यहीं खत्म नहीं होती है उस दिन से पेरवा देव अपने गुफा से बाहर निकलना बंद कर दिए। वह साल में एक ही बार निकला करते हैं वह भी अपने ससुराल जाने के लिए। तोरपा - मुरहू रोड में एक गांव है पहरिया, वहीं ससुराल है उसका। परंतु वह सामने से अपने ससुराल नहीं जाकर बिंगकिलोर अर्थात सांप के जाने वाले नाले से होकर जाता था। पेरवा देव जब ससुराल जाता है तो घनघोर बारिश होती है और सभी तालाब में बेहिसाब मछलियां मिलती हैं।
लड़की जन्म लेते ही इन्हें सिंदूर लगाने का रिवाज आज भी है -
"पेरवा देव का ससुराल में सालों से एक बहुत ही अनोखी परंपरा चली आ रही है। पहरिया गांव के लोगों का मानना है कि उनके यहां कोई भी लड़की पैदा हुई तो पेरवा का देव उन्हें उठाकर ले जाएगा, इसीलिए लड़की के जन्म से ही उन्हें सिंदूर लगाने का रिवाज आज भी है।"
पानी का छींटा लोगों ऊपर पड़ता है और ऊपर खोह (गुफाओं) का तलाश में नजर प्राकृतिक सुंदरता पर ठहर-ठहर जाती है। बेशक झरने की ऊंचाई ज्यादा नहीं और नीचे देखने पर लगता है समतल से पानी गिर रहा है । मगर संकरी घाटी होने के कारण पानी का जमाव बहुत ही सुंदर लगता है।
पुल को पार करने का किराया है मात्र ₹5-
हमें पता चला कि पुल पारकर जाने पर ही झरना दिखाई देगा। लकड़ी के बने छोटे से पुल को पार करने का किराया ₹5 है। ग्रामीणों ने पर्यटकों की सुविधा के लिए ख़ुद ही इस पुल का निमार्ण किए हैं और इससे प्राप्त शुल्क का साफ़ - सफाई में उपयोग किया जाता है।
हाल ही में नाव का निर्माण किया गया है-
पुल पारकर पत्थरों पर चढ़कर ऊपर जाना पड़ता है। ऊपर से ही दिखाई देता है एकदम साफ़ और कल - कल करता हुआ झरना और नीचे एकदम हरा-हरा पानी बिल्कुल अद्भुत तथा मनमोहक दृश्य। ऊंचे - ऊंचे चट्टानों से बहकर आता पानी और उस पर तैरती एक लकड़ी का नाव जिससे दोनों ओर से रस्सियों से बांधकर खींचा जाता है ।
यह एक बहुत ही अनूठी आईडिया है जिसके कारण सैलानी झरने के पास तक जा सकते हैं। 2 साल पहले ही इस नाव का निर्माण किया गया था। अभी एक ही नाव है मगर 1 January 2021 से एक और नाव को उतारा जा रहा है क्योंकि अब यहां बहुत भीड़ होने लगी है। 5 वर्ष पहले ग्रामीणों ने समिति बनाकर पेरवा घाघ को संवारने का कार्य शुरू कर दिया था।
पूरे रास्ते ग्रामीण खाद्य पदार्थ की है दुकान-
पूरे रास्ते ग्रामिणों ने खाद्य पदार्थ की दुकान सजा कर रखते हैं । चना, मौसमी फल, फुचका (गोलगप्पा), छिलका चावल का, उसके साथ आलू , टमाटर, चना की सब्जी का स्वाद अभी भी बुलाया नहीं जा सकता है। मूंगफली, झालमुड़ी और ना जाने कितने किस्म के व्यंजन मौजूद रहते हैं ।
पेरवा घाघ जलप्रपात जैसे पर्यटन स्थलों के नाम -
- सीता जलप्रपात/ Sita Falls / Sita Falls
- जोन्हा फॉल / Jonha Falls
- हुंडरू जलप्रपात /Hundru Fall
- पेरवा घाघ जलप्रपात /Perwa Ghagh Fall
- दशम जलप्रपात /Dasham Fall
- सूर्य मंदिर / Surya Mandir
- दिउड़ी मंदिर / Dewri Mandir
- बिरसा जैविक उद्यान / Bhagwan Birsa Biological Park
निष्कर्ष :-
आज के इस Article में हमने आपको बताया कि पेरवा घाघ जलप्रपात कहां पर स्थित है ?, इसके बारे क्या - क्या कहानियां है ?, पेरवा घाघ जलप्रपात का क्या खास बातें हैं ?, तथा इससे जुड़ी हुई बहुत सारे रोचक जानकारी भी साझा किए हैं।
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