मां छिन्नमस्तिका मंदिर | Maa Chhinamastika Temple | रजरप्पा मंदिर - Ramgarh Ki Shaan

भारत को देव भूमि कहा जाता है क्योंकि सारे ब्रह्माण्ड के जितने भी देवी - देवताएं हैं सब भारत में ही जन्म लिए हैं। हमारे देश भारत का धर्म और समाज, शिक्षा और सभ्यता, आचारानुष्ठान तथा सभी हमारे यहां के लोगों के द्वारा ही आज सत्य की नींव पर खड़े हैं।

मां छिन्नमस्तिका मंदिर | Maa Chhinamastika Temple | रजरप्पा मंदिर
मां छिन्नमस्तिका मंदिर | Maa Chhinamastika Temple | रजरप्पा मंदिर
 

यही वजह है कि भारत के तीर्थ स्थानों के साथ सभी भारतीय का अटूट संबंध जुड़ा हुआ है। लोगों का इन धार्मिक स्थालो  पर ताँता लगा  है। ऐसा ही एक पवित्र स्थल है - मां छिन्नमस्तिका मंदिर जो असम के मां कामाख्या मंदिर के बाद दुसरे सबसे बड़े शक्तिपीठ के रूप में विख्यात है। 

तो चलिए आज के इस Article में हमलोग जानते हैं कि - मां छिन्नमस्तिका मंदिर कहां स्थित है ?, मां छिन्नमस्तिका मंदिर की निर्माण कब हुआ है ?, मां छिन्नमस्तिका मंदिर से जुड़ी क्या - क्या कहानियां हैं ? तथा इसके अलावा बहुत सारी जानकारियां जो आप जानना चाहते हैं ,उन जानकारियों को साझा करेंगे ।

मां छिन्नमस्तिका मंदिर कहां स्थित है ?

मां छिन्नमस्तिका मंदिर/ रजरप्पा मंदिर  झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 80 किलोमीटर तथा रामगढ़ से 27 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ये मंदिर रामगढ़ जिले के रजरप्पा गांव में स्थित है। रजरप्पा के भैरवी-भेड़ा नदी और दामोदर नदी के संगम पर स्थित मां छिन्नमस्तिका मंदिर आस्था की धरोहर है।

मां छिन्नमस्तिका मंदिर | Maa Chhinamastika Temple | रजरप्पा मंदिर
मां छिन्नमस्तिका मंदिर | Maa Chhinamastika Temple | रजरप्पा मंदिर

 रजरप्पा की पावन धरती पर ये मंदिर अवस्थित है, ये जगह अति पवित्र और आस्था का केंद्र है। यहाँ पर श्रद्धालु दूर - दूर से माता के दर्शन के लिए आते रहते हैं। यहाँ पर लोगों की सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। 

मां छिन्नमस्तिका मंदिर की निर्माण कब हुआ है ?

मन्दिर की ख़ास विशेषता यह है कि ये दुनिया के सबसे बड़े शक्तिपीठ के रूप में विख्यात असम के मां कामाख्या मंदिर के बाद दुसरे सबसे बड़े शक्तिपीठ के रूप में विख्यात मां छिन्नमस्तिके मंदिर काफी लोकप्रिय है।

 

इस मंदिर के निर्माण काल के बारे में पुरातात्विक विशेषज्ञों ने भी आज तक पूरी तरह से पता नहीं लगा पाए हैं। लेकिन कई विशेषज्ञों का मानना है कि इस मंदिर का निर्माण लगभग 6000 वर्ष पहले हुआ था। 

कई लोग तो इसे महाभारत कालीन मंदिर भी बताते हैं। इस मंदिर की उत्तरी दीवार में रखे एक शिलाखंड पर दक्षिण की ओर मुख किए माता छिन्नमस्तिका का दिव्य रूप अंकित है।

रजरप्पा मंदिर के अलावा यहां पर और कौन - कौन सी मंदिर है ?

रजरप्पा मंदिर का यह सिद्धपीठ/शक्तिपीठ केवल एक मंदिर के लिए ही विख्यात नहीं है, बल्कि यहां पर मां छिन्नमस्तिका मंदिर के साथ - साथ महाकाली मंदिर, सूर्य मंदिर, दस महाविद्या मंदिर, बाबाधाम मंदिर, बजरंगबली मंदिर, शंकर मंदिर और कमल मंदिर के नाम से कुल 7 मंदिर एक ही जगह मौजूद हैं। 

मां छिन्नमस्तिका मंदिर | Maa Chhinamastika Temple | रजरप्पा मंदिर
मां छिन्नमस्तिका मंदिर | Maa Chhinamastika Temple | रजरप्पा मंदिर

इस मंदिर के समीप ही पश्चिम दिशा से दामोदर नदी तथा दक्षिण दिशा से कल-कल करती भैरवी नदी का दामोदर में संगम होना मां छिन्नमस्तिका मंदिर की खूबसूरती में चार चांद लगा देता है। दोनों नदियों  संगम देखने लायक नज़ारे का निर्माण करती है। 

मां छिन्नमस्तिका मंदिर कैसे पहुंचे ?

रजरप्पा मंदिर तक आने के लिए आपको झारखण्ड की राजधानी रांची से 80 KM, रामगढ़ से 27, हजारीबाग से 75 KM, बोकारो से 60 KM, धनबाद से 96 KM की दूरी तय करनी होगी । इन सारे जगहों से बहुत सारे Bus, Car, Taxi, Ola, Ubar Cabs आदि मिलेंगे जिससे कि आप आसनी से यहाँ तक पहुंच सकते हैं।

यहां आते वक्त आपको रास्ते के किनारे बहुत  सारे सुंदर - सुंदर पेड़ - पौधे, नदी - नालें, जंगल - झाड़ तथा प्राकृतिक नजारें देखने को मिलेंगे। ये सारी चीज़ें देखने के बाद आपको लगेगा कि मानो यहीं कहीं हम अपनी आशियाना बना कर बस जाएं। 

आप किसी अच्छी जगह देखकर Photo Click & Video Shoot कर सकते हैं। यहाँ पर बहुत सारे Album ,Film ,Documentary अदि की शूटिंग चलती रहती है। आप भी यादगार लम्हों को कैमरे  में कैद कर संजो कर रख सकते हैं। 

मां छिन्नमस्तिका मंदिर तक इन साधनों से पहुंचा जा सकता है -

By Air ✈️:-

  • Nearest Airport - Ranchi & Bokaro Airport
बिरसा मुंडा हवाई अड्डा से 73 KM तथा बोकारो हवाई अड्डा से 57 KM  की दुरी है।

By Train🚉 :-

  • Nearest Railway Station - Ranchi, Ramgarh & Bokaro Railway Station
                रांची रेलवे स्टेशन से लगभग 67 KM, Ramgarh से 27 KM तथा बोकारो से 58 KM की दुरी है

By Bus 🚌 :-

  • Nearest Bus StandRanchi & Ramgarh Bus Stand
               रांची बस स्टैंड से लगभग 65 KM है तथा रामगढ़ बस स्टैंड से 26 KM की दुरी है।

मां छिन्नमस्तिका मंदिर में पूजा के आलावा क्या - क्या कार्यक्रम होते हैं ?

यह मन्दिर आस्था और विश्वास का पवित्र स्थल है जिसके कारन यहां आने वाले भक्तों / श्रद्धालुओं की संख्या दिन प्रति दिन बढ़ते ही जा रही है। इस मंदिर में बड़े पैमाने पर शादी-विवाह, मुंडन-उपनयन, मानसिक (किसी मनोवांछित फल प्राप्त होने के बाद उसे पूरा करने को मानसिक कहा जाता है।) तथा इसके अलावा बहुत कार्यक्रम भी संपन्न कराए जाते हैं।

मंदिर खुलने का समय प्रातःकाल 4 बजे से है। इसी समय से माता का दरबार सजना शुरू होता है। इस मन्दिर में सिर्फ़ अमावस्या और पूर्णिमा के दिन ही मन्दिर आधी रात तक खुली होती है। यहां भक्तों की भीड़ काफ़ी होने के कारण सुबह से पंक्तिबद्ध खड़े होकर रहना होता है। 

खासकर इस मंदिर में शादी-विवाह, मुंडन-उपनयन के लगन और दशहरे के मौके पर भक्तों / श्रद्धालुओं की काफ़ी भीड़ होती है जिसके कारण भक्तों को 3-4 किलोमीटर लंबी लाइन लगनी पड़ जाती है।

यहां पर इतनी बड़ी भीड़ को संभालने और माता रानी के दर्शन को सुलभ बनाने के लिए झारखंड पर्यटन विभाग Jharkhand Tourism Development Corporation ( JTDC ) के द्वारा गाइडों की नियुक्ति की गई है तथा आवश्यकता पड़ने पर स्थानीय पुलिस भी सहयोग करती है।

मां छिन्नमस्तिका की प्रतिमा किस तरह से बनी हुई है ?

इस मंदिर के अंदर जो देवी की मूर्ति विराजमान है कहा जाता है - वो साक्षात मां काली का रूप है। मुर्ति पर उनके दाएं हाथ में खड़ग और बाएं हाथ में अपना ही कटा हुआ मस्तक है। उत्तरी दिवार में रखी शिलाखंड में मां की तीन आंखें हैं, इसके साथ ही वह अपनी बाईं पैर आगे की ओर बढ़ाए हुए कमल पुष्प पर खड़ी हुईं हैं। ठीक उनके पांव के नीचे विपरीत स्थिति में कामदेव और रति शयनावस्था में हैं।

मां छिन्नमस्तिका मंदिर | Maa Chhinamastika Temple | रजरप्पा मंदिर
मां छिन्नमस्तिका मंदिर | Maa Chhinamastika Temple | रजरप्पा मंदिर

मां काली का गला सर्पमाला तथा मुंडमाला से सुशोभित है। इसके साथ बिखरे और खुले केश, जिह्वा बाहर, आभूषणों से सुसज्जित मां काली नग्नावस्था में दिव्य रूप में खड़े हैं। माता के दोनों तरफ डाकिनी और शाकिनी खड़ी हैं जिन्हें वे रक्तपान करा रही हैं और स्वयं भी रक्तपान कर रही हैं। इनके गले से रक्त की 3 धाराएं निकल रही हैं।

मंदिर के आस-पास क्या - क्या मौजूद है ?

मंदिर का मुख्य द्वार पूरब दिशा की ओर है। मंदिर के प्रांगण में ही यज्ञ करने के लिए हवन कुंड का निर्माण किया गया है। ठीक इसके आगे बलि का स्थान है, बलि स्थान पर प्रत्येक दिन लगभग 100 - 200 बकरों की बलि चढ़ाई जाती है। सामने ही मुंडन कुंड भी है। इसके दक्षिण दिशा में एक सुंदर भवन बनाया गया है।

मन्दिर के पूर्व में भैरवी/भेड़ा नदी के तट पर खुले आसमान के नीचे एक View Point बनाया हुआ है जिस जगह पर खड़ा होकर Photo Click और सुन्दर नज़ारा देख सकते हैं। इसके साथ दामोदर नदी में हमेशा नौका विहार (Boating) का आनंद ले सकते हैं। 

मां छिन्नमस्तिका मंदिर | Maa Chhinamastika Temple | रजरप्पा मंदिर
मां छिन्नमस्तिका मंदिर | Maa Chhinamastika Temple | रजरप्पा मंदिर


मन्दिर के पश्चिम भाग में एक बड़ा भंडारगृह तथा कोई कार्यक्रम आयोजित करने के लिए एक बड़ा हॉल बनाया हुआ है। भंडारगृह का नाम पंचवटी है जहां प्रत्येक आमावस्या और पूर्णिमा में भंडारा करवाया जाता है। भक्त अपनी ओर से भी यहां भंडारा करा सकते हैं।

यहां एक कतार से बनी महाविद्या के कुल 8 मंदिर हैं जो मां छिन्नमस्तिके के रूप और रहस्य को और बढ़ा देती हैं। इन मंदिरों में मां तारा, मां षोडिषी, मां भुवनेश्वरी, मां भैरवी, मां बगला, मां कमला, मां मतंगी और मां घुमावती मुख्य हैं। इसके ठीक सामने एक बरगद का पेड़ है जिसमें भी बहुत रहस्य छिपा हुआ है।

 तांत्रिक घाट के सामने एक विशाल शिव लिंग भी है। सामने ही एक Lotus Temple  भी मौजूद है। सामने में गिरी बाबा का आश्रम है जिसका नाम है आत्मदर्शी मानव समाज। इस आश्रम में 4 द्वार हैं - नदी की ओर सुरसा द्वार, मंदिर की ओर नाग द्वार, सिंह द्वार, गज द्वार हैं।  

मंगलवार और शनिवार को रजरप्पा मंदिर में विशेष पूजा की जाती है। मां काली को बकरे (जिसे स्थानीय भाषा में पांठा कहा जाता है ) की बलि दिया जाता है। यह परंपरा यहां पर सदियों से चली आ रही है। बकरे की बलि स्थान पर आपको देखकर आश्चर्य होगा क्योंकि वहां पर एक भी मक्खी नज़र नहीं आएंगी।

गर्भ-गृह (मुख्य मंदिर) से ठीक बाहर मंदिर परिसर में ही एक जगह कच्चे धागे से बंधा कई सारे पत्थर हैं, इसे मनौती पत्थर कहते हैं। लोग अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए यहाँ पत्थर पर धागा बांधते हैं और जब उन्हें लगता है कि देवी माँ ने उनकी मनोकामनाएं पूरी कर दी तो वे लोग मंदिर आकर बांधे हुए धागे को खोलने की रस्म पूरी करते हैं।

मंदिर के समीप कई सारे कुंड हैं ?

रुद्र - भैरव मंदिर के नजदीक ही एक कुंड है। दोनों नदी के संगम के बीचों - बीच में एक अद्भुत पापनाशिनी कुंड है, जिसमें कोई भी रोगग्रस्त व्यक्ति अगर एक बार स्नान कर ले तो उनका सारा रोग - दुःख दूर हो जाएगा और उनमें फिर से नवजीवन प्राप्त होगा।

मंदिर के चारों कोना में तथा मंदिर प्रांगण में बहुत सारे हवन कुण्ड बनाया गया है जिसमें विशेष हवन / यज्ञ किया जाता है। मंदिर के समीप मुंडन कुंड, चेताल के समीप ईशान कोण का यज्ञ कुंड, वायु कोण कुंड, अग्नि कोण कुंड जैसे कई सारे कुंड मौजुद हैं।  

मां छिन्नमस्तिका मंदिर | Maa Chhinamastika Temple | रजरप्पा मंदिर
मां छिन्नमस्तिका मंदिर | Maa Chhinamastika Temple | रजरप्पा मंदिर

दामोदर नदी के सामने एक पत्थर का सीढ़ी है जिसमें से होकर मंदिर के उत्तर दिशा की द्वार पर घुस सकते हैं। इसका निर्माण 22 May 1972 ई. को संपन्न हुआ था। इसे "तांत्रिक घाट" कहा जाता है, जिसकी चौड़ाई 20 Feet तथा लंबाई 208 Ft है। इसी के पास एक विशाल शिव लिंग है जिसके पीछे भी बहुत बड़ा रहस्य छिपा हुआ है।

दामोदर नदी की गहराई कितनी है ?

दामोदर और भैरवी/भेड़ा नदी का संगम स्थल भी बेहद ही खूबसूरत है। भैरवी नदी दक्षिण से उत्तर दिशा की ओर से बहती है जबकि दामोदर नदी पश्चिम से पूरब दिशा की ओर। भैरवी नदी को एक स्त्री नदी मानी जाती है जबकि दामोदर नदी को पुरुष नदी। 

दोनों नदी के संगम पर भैरवी नदी ऊपर से नीचे की ओर दामोदर नदी के ऊपर गिरती है। किंवदंतियों के अनुसार जिस जगह पर भैरवी नदी दामोदर में गिरकर मिलती है उस जगह की गहराई अब तक किसी को पता नहीं है।

मां छिन्नमस्तिका की महिमा की पौराणिक कथाएं क्या - क्या हैं ?

First Story :- मां छिन्नमस्तिका की महिमा की बहुत सारी पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। प्राचीनकाल की बात है झारखंड के छोटानागपुर में रज नाम का एक राजा राज करते थे। राजा की पत्नी का नाम रूपमा था। लोगों का कहना है कि इन्हीं दोनों के नाम से इस स्थान का नाम रजरूपमा पड़ा, जो बाद में रजरप्पा के नाम से जाना जाने लगा।

Second Story :- एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार पूर्णिमा की रात में जब शिकार की खोज में राजा रज और उनके सारे सैनिक दामोदर और भैरवी नदी के संगम स्थल पर पहुंचे और रात्रि विश्राम करने के लिए उसी जगह पर रूक गए। खाना-पीना करने के बाद रात्रि विश्राम के दौरान राजा रज को एक स्वप्न आया जिसमें लाल वस्त्र धारण किए तेज मुख मंडल वाली एक सुंदर और सुशील कन्या दिखाई दिया।

उसने राजा रज से कहा - हे राजन! इस आयु में कोई संतान न होने से तेरा जीवन बिल्कुल सूना - सूना लग रहा है। अगर तुम मेरी आज्ञा मानोगे तो रानी रूपमा की गोद भर जाएगी।  इतना सुनते ही राजा की आंखें खुल गईं और वे उस सुंदर सी कन्या को देखने के लिए इधर-उधर भटकने लगे। 

  • Dasam Fall-Ranchi Ki shaan
  • इस बीच उनकी आंखें स्वप्न में दिखी सुंदर और सुशील सी कन्या से जा मिलीं। वह कन्या नदी के बीचों-बीच जल के ऊपर राजा के सामने प्रकट हुई। उस कन्या रूप अलौकिक था जिसे राजा देखकर डर गए। राजा को डरते हुए देख वह कन्या कहने लगी - हे राजन! मैं छिन्नमस्तिका देवी हूं। 

    मां छिन्नमस्तिका मंदिर | Maa Chhinamastika Temple | रजरप्पा मंदिर
    मां छिन्नमस्तिका मंदिर | Maa Chhinamastika Temple | रजरप्पा मंदिर

    कलियुग के मनुष्य मुझे अभी तक नहीं जान सके हैं, जबकि मैं इस वन में नदी के किनारे प्राचीनकाल से गुप्त रूप से निवास कर रही हूं। मैं तुम्हें वरदान देती हूं कि आज से ठीक नौवें महीने में तुम्हें एक सुंदर सा पुत्र की प्राप्ति होगी। जो आगे चलकर काफ़ी यशस्वी सम्राट होगा। चारों ओर इसके नामों की गुण-गान होगा।

    फिर वो देवी बोली - हे राजन! इस मिलन स्थल के समीप तुम्हें मेरा एक छोटा सा मंदिर दिखाई देगा, इस मंदिर के अंदर घुसना जिसमें शिलाखंड पर मेरी प्रतिमा अंकित दिखेगी। तुम कल सुबह मेरी पूजा करके एक बलि चढ़ाओ। जिसके बाद तेरा सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाएंगे। इतना कहकर मां छिन्नमस्तिके अंतर्ध्यान हो गईं। इसके बाद से ही यह पवित्र तीर्थ स्थल रजरप्पा के रूप में विश्व विख्यात हो गया।

    Third Story :- एक दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार एक बार मां भगवती भवानी अपनी सहेलियां जया और विजया के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान करने चली गईं। स्नान करने में उन्हें काफ़ी देर हो गई थी जिसके चलते उन्हें काफ़ी भुख लगने लगी। भूख से उनका शरीर काला पड़ने लगा तो उनकी सहेलियां ने भोजन मांगने लगे। देवी ने उनसे कुछ समय प्रतीक्षा करने को कहा।

    बाद में वह अपनी सहेलियों के विनम्र आग्रह तथा उन दोनों की भूख मिटाने के लिए खुद की सिर ही काट ली। कटा सिर देवी के हाथों में आ गिरा और उनके गले से 3 धाराएं निकलने लगीं। वह 2 धाराओं को अपनी सहेलियों की ओर प्रवाहित करने लगीं और बाकी को खुद पीने लगीं। तभी से ये मां छिन्नमस्तिका देवी कही जाने लगीं।

    यहां ठहरने के लिए कैसी व्यवस्था है ?

    मंदिर के आस-पास ही फल-फूल, प्रसाद की कई छोटी-बड़ी दुकानें लगी हुई हैं। आमतौर पर लोग यहां पुजा करने सुबह ही आते हैं और दिनभर पूजा-पाठ तथा मंदिरों के दर्शन करने के बाद शाम होने से पहले ही अपने गंतव्य स्थान लौट जाते हैं। 

    यहां पर ठहरने की सुविधा तो है लेकिन ज्यादा बेहतर नहीं होने के कारण लोग यहां रात्रि विश्राम के लिए नहीं रुकते। धीरे - धीरे इसके आस-पास में Guest House & Restaurant बनाया जा रहा है, उसके बाद रात में रुकने के लिए कोई परेशानी नहीं होगी।

    रजरप्पा में पहले की अपेक्षा अभी बहुत सारे परिवर्तन आ चुका है। यह तीर्थ-स्थल के अलावा पर्यटन स्थल के रूप में भी विकसित हो चुका है। यह झारखण्ड के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। यहां पर नवरात्रि के समय पर असम, पश्चिम बंगाल, बिहार, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश समेत कई प्रदेशों से श्रद्धालु आते हैं।

    आदिवासी समुदायों के लिए यह एक त्रिवेणी संगम की भांति है। यहां पर मकर संक्रांति के अवसर पर हजारों - हजार श्रद्धालुओं का जमावड़ा होता है। आदिवासी समाज तथा दूसरे समाज के लोग यहां स्नान व टुसू - चौड़ल प्रवाहित कर तथा एक - दुसरे से गले मिलते हैं और चरण स्पर्श करते हैं।

    मां छिन्नमस्तिका मंदिर जैसे पर्यटन स्थलों के नाम -

    निष्कर्ष :- 

    आज के इस Article में हमने आपको बताया कि मां छिन्नमस्तिका मंदिर कहां स्थित है ?मां छिन्नमस्तिका मंदिर की निर्माण कब हुआ है ?मां छिन्नमस्तिका मंदिर से जुड़ी क्या - क्या कहानियां हैं ? तथा इसके अलावा बहुत सारी जानकारियां जो आप जानना चाहते हैं। 

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    HemanT

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