करम पूजा | करमा पूजा | Karma Puja - Jharkhand Ki Shaan

 Karma Puja The Festival Of Nature :- करम पर्व अथवा करमा पर्व एक प्राकृतिक पर्व है, इसे झारखण्ड , उड़ीसा , छत्तीसगढ़ ,बिहार , पश्चिम बंगाल तथा असम के आदिवासी और मूलवासी के लोग बड़े ही धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। 

झारखंड के लोक पर्व बोलने से ही उसका सीधा संबंध प्राकृतिक की ओर जाता है। इस पर्व में बहनें अपने भाइयों के लिए लंबी दीर्घायु तथा अच्छे स्वास्थ्य की कामना करती हैं। करमा पर्व कर्म और धर्म के बीच में समन्वय स्थापित कर चलने का संदेश देता है।

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झारखंड राज्य में साल का सबसे पहला प्राकृतिक पर्व सरहुल होता है, जिस समय पेड़ पौधे में नए-नए कोपलें और पत्तियाँ आना शुरू होती हैं उसी समय ये पर्व मनाया जाता है। साल /सखुवा के पेड़ों पर इसके फूल एक अलग ही समां बांध देती है ,सरहुल में अच्छी बारिश के लिए पूजा किया जाता है।


 जब  अच्छी बारिस होती है तब किसान अपनी फसल रोपते हैं और फसल का काम समाप्त होने की खुशी में करमा पर्व को मनाते हैं। प्राकृतिक का दूसरा पर्व करम या करमा पूजा  अच्छी फसल हो इसी कामना से पूजा किया जाता है।

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करम पूजा या करमा पूजा कब और क्यों किया जाता है ?

करम पूजा अथवा करमा पूजा भाद्रपद के शुक्ल पक्ष के एकादशी (11 वीं दिन) पर किया जाता है। यह पर्व भाई-बहन के बीच के पवित्र सम्बन्ध को दर्शाता है, भाई बहन का अटूट प्रेम को बनाए रखने के लिए इसे मनाया जाता है।

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 इस पर्व को सभी लोग बड़े ही हर्षोल्लास के साथ इसलिए मनाते हैं, क्योंकि इस समय सभी किसान लोगों का खेतों में काम खत्म हो जाता है। सभी लोग करम देवता की पूजा करते हैं और अच्छी फसल होने की कामना करते  हैं। 

करम पूजा किस विधि - विधान से किया जाता है ?

 करम पूजा को खासकर कुंवारी लड़कीयां करती हैं, जिन्हे करमइती कहते हैं। इसके लिए 3 या 5 या 9 दिन का जावा/ बालू किसी नदी ,सतिया से उठाया जाता है। 3 या 5 या 9 दिन तक उपवासी लड़कीयां  बिल्कुल सादा भोजन करती हैं और पूरे 9 दिन तक सुबह और शाम को करम गीत गाकर जावा को जगाती है।

                                           
पांचपरगनिया भाषा तथा कुरमाली भाषा में जितने तरह के नेग - नीति ( विधि - नियम) होते हैं उतने ही तरह के लोकगीत भी मिलते हैं। 

जैसे :- 
  • जावा/ बालू उठाने का गीत
  • जावा को घर घुसाने का गीत
  • जावा जगाने का गीत
  • फूल लहरने का गीत
  • करम काटने का गीत
  • करम काटकर घर लाने का गीत
  • पूजा का गीत
  • पूजा के समय पर वर/आशीष मांगने का गीत
  • पूजा के बाद घर जाने का गीत
  • विसर्जन गीत... इत्यादि।

जावा/बालू उठाने का नियम :-

जो भी लड़की इस पूजा को करना चाहती हैं सारी कुंवारी लड़कियां (करमइती) नया-नया डालिया ( जो बांस का बना होता है) लेकर गांव के बाहर के नदी, तालाब, डोभा या नहर की ओर नाचते - गाते - झूमते हुए चले जाते हैं। 

जिस डलिया में जावा उठाने का होता है उस डलिया को पहले अच्छी तरीके से रंग-बिरंगे रंगों से रंगा जाता है। उसमें 8 कलाई  ( कुलथी दाल, चना, जौ, तिल, गेहूं, मकई, सरसों, सुरगुंजा  ), धान का पौधा ,झींगा फूल, हल्दी...इत्यादि रहता है।

इस समय गाए जाने वाला गीत है, जो हमारे क्षेत्र में गाया जाता है। यहाँ गांव का नाम अपने अनुसार गीत में रखा जाता है, जो हमरे अपने गांव में गाया जाता है वो इस तरह है :-

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 काहां केर डोम डाली, काहां केर सरू बाली।
        लोवाहातु केर डोम डाली, कांची नदिक सरू बाली।।
  
जावा उठाकर सभी लड़कियां (करमइती) नाचते - गाते - झूमते हुए वापस जिस घर में पूजा होता है वहां चले आते हैं।

जावा/बालू वाले डालिया को घर घुसाने का नियम :-

सभी करमइती उस घर में पहुंच जाते हैं जहां पर करम पूजा होने वाला रहता है  और घर में घुसने से पहले जो नेग - नीति होता है उसे करते हैं फिर उस समय एक अलग गीत गाते हैं :-
       
झींझीर मुसा झींझीर मुसा जावा ना काटिहा गो।
        भरसी आइगे झोलबूं मूसा तेंतैइर सोंटाय सोंठबूं गो।।

इस गीत को गाते - गाते जावा को एक जगह पर रख देते हैं, उसके बाद सभी लड़कियां (करमइती) अपने - अपने घर चले जाते हैं। फिर शाम को सभी करमइती आते हैं और जावा को जगाने के लिए गीत गाते हैं :-

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इति - इति जावा किया - किया जावा । 
जावा जागलों मोंय धान - भौउरा ।।

गीत गाते गाते धुना-धूप,अगरबत्ती जलाते हैं और स्तुति  करते हैं, इसी तरह से पूरे 3 या 5 या 9 दिन तक जावा गीत गाकर जगाते हैं। 

 दशमी के दिन करम राजा को निमंत्रण देने के लिए जाना पड़ता है। निमंत्रण वही देने जाता है जो उपासक होता है, करम वृक्ष के पूरब तरफ़ के दो चंगी वाले डाली को माला से बांधा जाता है और करम देवता को बोला जाता है कि हमलोग कल ढोल-नगाड़े के साथ आएंगे आपके पास आपको हमारे साथ चलना होगा। 

निमंत्रण देने के समय ले जाने वाले डलिया में सिंदूर, बेल पत्ता, गुंड़ी (अरवा चावल को पीसकर बनाया जाता है) सुपारी, संध्या दीया आदि रहता है।

फुल लहरने ( फूल तोड़ना) जाने का नियम :-

एकादशी के दिन सुबह ही सभी लड़कियां (करमइती) फुल लहरने के लिए अपने आस-पास के जंगल में चली जाती हैं। फूल, पत्ता, घास, धान इत्यादि जो - जो मिलता है सबको एक नया खांची ( बांस का बना हुआ बड़ा सा टोकरी) में भर देते हैं। इस समय भी एक खास गीत गाया जाता है :- 
 
 डाला ले डाला ले फूल लहरे जाई, वने बांसी के रे बाजाय ।
   बांसी सुनी बांसी सुनी दिलो नी धोराय।।
   बाजाय बांसी के रे बाजाय...

इस गीत को गाते-गाते  सारे करमइती  फूल तोड़ते हैं और उसके बाद सभी कोई जंगल के नजदीक वाले नदी या सरोवर में नहा धोकर करम वृक्ष के पास पहुंच जाते हैं, वहां पर पहले से ही मुख्य उपासक पहुंचे हुए रहते हैं।

करम डाली काटने का नियम :-

इस समय भी एक खास तरह का गीत होता है जिसको गा-गा कर करम डाली को काटा जाता है :-


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करम काटे गेले दादा करम नाही पाले,
    करमइती बहिन दादा ससूर घोरे।
    करम काटे गेले दादा करम नाही पाले,
    करिया बहू पाले दादा मुंह मेचकाले।
    दें दादा दे दादा करम काइट दे,
    दे भौउजी दे भौउजी दोना टिप दे।

इस गीत को गाते - गाते घर तक पहुंचते हैं और इसे जिस जगह पर पूजा किया जाता है, उस जगह पर गाड़ दिया जाता है। 

उसके बाद सभी लड़कियां (करमइती) अपना - अपना घर चले जाते हैं फिर नया कपड़ा, साड़ी, पूरा पूजा का सामान को एक नया खांची में लेकर पूजा स्थल  पर पहुंच जाते हैं।

करम पूजा का नियम :-

 पूजा  के समय गांव के सारे गन्य - मान्य व्यक्ति तथा बूढ़े - बुजुर्गों, माताएं- बेटियां , भाई - बहन सब कोई पूजा सुनने के लिए वहां पर उपस्थित हो जाते हैं।

पूजा के लिए मुख्य सामग्रियां हैं :-

करम पूजा या करमा पूजा के लिए पूजन सामग्रीयां निम्नलिखित हैं-

  • सिंदूर
  • धुना- धूप
  • खीरा ( जिसे बेटा के रूप में मानते हैं
  • तागा- धागा ( जिसे कलाई पर बांधा जाता है )
  • संध्या दीया
  • चुउरा / चूड़ा 
  • गुड़
  • मधु
  • दूध - दही
  • घी
  • अरवा चावल
  • हरतकी ( वनफल )
  • सुपारी
  • पान पत्ता
  • दूब  घास
  • बेल पत्ता...
इत्यादि समान मौजूद रहता है। वैसे तो झारखंड के जितने भी प्राकृतिक पर्व - त्यौहार होते हैं, वे सारी पूजा पाहान ही करती हैं। लेकिन आजकल तो कोई कोई जगह में ब्राह्मण से भी पूजा करवाया जाता है। 

पूजा शुरू होने के पहले सभी करमइती  करम देवता के चारों ओर बैठ जाते हैं और पूजा की प्रक्रिया शुरू हो जाती है , फिर पाहान करम कहानी बोलना शुरू कर देते हैं।

यह कहानी बहुत ही ऐतिहासिक और बहुत ही प्रेरणादायक कहानी है जिसे हमलोग करमा और धरमा के कहानी नाम से जानते हैं। इस कहानी में बताया जाता है कि पृथ्वी लोक में कब से कर्म पूजा शुरू हुई, किस तरह से शुरू हुई और इसकी क्या - क्या विशेषताएं हैं ?

करमा और धरमा की कहानी खत्म होते ही वहां पर उपस्थित सारे लोग एक खास गीत गाते हैं :-

खार - खीर खीरा न घानी दूईएक चुउरा,
हामें ससूर जावब करमैक सेवा।
बाकी रे धनी - धनी...
आंकरि बाड़ीक सांकरि तो कोइरी बाड़ी खीरा,
हामें ससूर जावब करमैक सेवा।
बाकी रे धनी - धनी...

 

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इस गीत को गाते समय लड़कियां (करमइती) नाचते भी हैं और ठीक उसके बाद सभी अपने - अपने आसन पर बैठ जाते हैं। सभी लड़कियां (करमइती) बारी-बारी से करम डाली के पत्ते को पकड़ते हैं और पाहान बारी-बारी से सभी को आशीष मांगने के लिए बोलते  हैं ।

पाहान :- डाइर धोइर - धोइर का पाला गो ?
करमइती :- आपन धरम भाईऐक करम ।
पाहान :- आरो जे ?
करमइती :- निखे - सुखे छूवा - पूता रोहुन ।
( सभी कोई अपना अपना दुख - दर्द करम राजा को सुनाते हैं।)

 फिर एक खास गीत है जिसे गाकर लड़कियां (करमइती) वर/आशीष मांगते हैं :-
         
करमेका एकादशी डाला लेले फूल लहरी जाई,
         देनो करम राजा मांगाए देनो वर ,
         कतैईक दिन राखबे कुंवर ।

इस गीत के बाद सभी लड़कियां (करमइती) पाहान को प्रसाद तथा तागा कलाई में बांधते हैं और अपने-अपने जगह पर बैठ जाते हैं। पूजा खत्म होते ही वहां पर उपस्थित सारे लोग एक खास गीत गाते हैं :-

         
आइज रे करमेका राती...         
 डाइर धोइर - धोइर गोपीन 
         साउब मांगोय बेटा - बेटी।         
आइज रे करमेका राती...


इस गीत के समाप्त होते ही सभी को अपने-अपने घर की ओर चले जाते हैं और घर के जितने भी सदस्य हैं सबको प्रसाद और तागा बांधते हैं। फिर रात में गांव के जितने भी लोग माताएं - बहने, बड़े - बुजुर्ग सभी  करम आखड़ा जाते हैं। 

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वहां पर विभिन्न तरह के ढोल - नगाड़ा, मांदर या फिर आजकल तो साउंड सिस्टम भी आ गया है यही सब बजाके या अपने से गाते हैं और पूरी रिझ - रंग के साथ रात भर नाच - गान करते हैं। सुबह जैसे ही होता है.

वैसे ही सभी करमइती लोग करम राजा को चुमाने ( पूजा जैसा छोटा सा नियम ) करते हैं और घर के कोई बड़े लोग पुरुष या महिला  अपने-अपने खेत की ओर सिंदूआर, भेलवा आदि का डाली को काट कर ले जाते हैं और उसे खेत के बीचों-बीच गाढ़ देते हैं। 

इसे गाढ़ने का मान्यता है कि खेत में किसी प्रकार के रोग - दुःख नहीं होता है। ठीक उसी प्रकार अगर हम इसे वैज्ञानिक दृष्टि के साथ देखें तो अगर हम किसी डाली को अपने खेतों के बीचों-बीच गाढ़ देते हैं.

तो उसमें पक्षियों का बैठने का जगह बन जाता है जिससे कि पक्षी वहां बैठकर खेत में कीड़े मकोड़े को देख सके और अपना आहार बना सके। 

इस प्रकार से खेतों में फसलों की रक्षा होता है। यह सब करने के बाद सभी कोई करम राजा को विसर्जन करने के लिए ले जाते हैं। इस समय भी एक खास गीत गाया जाता है। 

करम राजा को विसर्जन करने के लिए गीत :-    

जाहू - जाहू करम राजा एहो - छयो मास ,
आवत भादर मास आनी रे घुराम।
जोखोंन तोंय करम राजा घोरे - दुआरे,
तोखोंन मोंय करम राजा नोहियरे।
जोखोंन तोंय करम राजा श्रीवृदांवने,
तोखोंन मोंय करम राजा ससूर घोरे।

विसर्जन करने आते समय सभी को ढोल - नगाड़े के साथ नाचते गाते झूमते हुए जहां से बालू / जावा उठाया गया था वहीं पर जाकर इसकी विसर्जन कर देते हैं। फिर सभी करमइती पारना करके अपना - अपना घर चले आते हैं।

निष्कर्ष :-  

करम पूजा करने की विधि -विधान क्षेत्र अनुसार अलग-अलग हो सकते हैं ,यहाँ हमने आपको पांच परगना क्षेत्र  (सिल्ली ,बुंडू ,सोनाहातू ,राहे तथा बरेंदा ) रांची जिला का पूर्वी क्षेत्र में जिस प्रकार की नेग-नियम और विधि -विधान ,गीत-संगीत के बारे में बताया है। 

पंचपरगनिया तथा कुड़माली भाषा में एक तरह के गानो को भाषा के उच्चारण के अनुसार गाया जाता है। यहाँ पर प्रस्तुत सभी गीत पंचपरगनिया भाषा में लिखित हैं । कुड़माली में अलग उच्चारण के साथ होगा। 

इस लेख को लिखने में काफी सावधानी बरती गयी है ,फिर भी किसी तरह की गलती होती है तो करबद्ध क्षमा चाहेंगे। 

✍️ लेखक :- कुमार हेमंत / सुदर्शन  (Blogger & YouTuber @ Ranchi Talk & Tech Ranchi) की कलम से । 

स्थान -राहे ,बुंडू, रांची,झारखण्ड 

इस लेख को राँची के दैनिक अख़बारों ने प्रमुखता से  29 August 2020 को प्रकाशित किया था ,जो नीचे दिया  गया है :-

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Sudarshaan

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